कृष्णमोहन झा

अयोध्या में सदभाव की मिसाल बन सकते हैं मन्दिर और मस्जिद …..

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने गत 9 नवंबर को जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, उस को चुनौती देने वाली सभी नौ पुनर्विचार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसके बाद अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सभी पुनर्विचार याचिकाए  मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी की मर्जी के विपरीत दायर की गई थी। इस विवाद के अन्य पक्षकारों ने भी पहले समीक्षा याचिकाए दायर करने की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया था, परंतु बाद में वे अपने बयान से पलट गए थे।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने हाल ही में कहा था कि मामले के छह और  पक्षकार समीक्षा याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। मामले के एक अन्य पक्षकार  सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वे सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले को चुनौती न देने के रुख पर कायम है। देश के अधिकांश मुस्लिम धर्मगुरु और वरिष्ठ नेताओं ने भी कहा था कि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 नवंबर को जो, फैसला दिया गया है, उससे अच्छा फैसला और कुछ नहीं हो सकता है। लेकिन हमेशा ही सांप्रदायिक राजनीति करने वाले असिसुद्दीन ओवैसी जैसे नेता अयोध्या के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अधूरा न्याय बताते हुए इस फैसले को चुनौती देने के पक्ष में लगातार बयानबाजी करते रहे । सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की के पक्ष में ढेरों दलीलें देते रहे। इन सभी बातों उनके पीछे केवल एक ही मकसद नजर आ रहा था कि वे येन केन प्रकारेण अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शीघ्र निर्माण के मार्ग में नया व्यवधान धान खड़ा किया जाय ,परंतु इन नेताओं की मंशा पूरी नहीं हुई।
सुप्रीमकोर्ट की जिस पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया, उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह मामला अब दोबारा नहीं खोला जाएगा। संवैधानिक पीठ ने कहा कि दायर की गई किसी भी पुनर्विचार याचिका का कोई आधार नहीं है।यहा यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले में मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि देने पर आपत्ति जताई थी। उधर निर्मोही अखाड़े ने भी अपनी याचिका में राम मंदिर ट्रस्ट में उसकी भूमिका और उन्हें प्रतिनिधित्व देने की मांग है की है ,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हमेशा के लिए इस मामले का पटाक्षेप कर दिया है कि अब यह मामला दोबारा नहीं खोला जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग पूरी तरह खुल चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अधूरा न्याय निरूपित करने वाले नेताओ और संगठनों अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट सदियों पुराने विवाद पर पूरा नया कर चुका है। अब उन्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए ,जिससे 9 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर में निर्मित सांप्रदायिक सद्भाव, आपसी प्रेम और भाईचारे के माहौल को नुकसान न पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मस्जिद निर्माण के लिए जो 5 एकड़ भूमि देने का आदेश दिया गया है, उस पर सारे गिले-शिकवे को साथ मिल बैठकर दूर किया जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने तो फैसले के बाद 50 धर्म गुरुओं की बैठक में इसके लिए सक्रिय पहल की शुरुआत भी कर दी थी। अब यह सिलसिला सतत आगे जारी रखने की आवश्यकता है। केंद्र की मोदी सरकार ने हमेशा ही इस विवाद पर अदालत के फैसले का सम्मान करने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी, जो अब पूरी हो चुकी है। अतः अब यह उम्मीद की जा सकती है कि अयोध्या में जल्द ही वह शुभ दिन आने वाला है, जब वहां राम मंदिर के निर्माण में मुस्लिम भी तहे दिल से सहयोग करेंगे और मस्जिद के निर्माण में सहयोग देने के लिए हिंदू आगे आएंगे।
कृष्णमोहन झा/(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)
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