बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा महोत्सव, 610 साल पुरानी है ‘जोगी बिठाई’ की रस्म
(देवराज सिंह चौहान) जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की निराली छटा इन दिनों जगदलपुर में देखने को मिल रही है. नवरात्र पर्व के दौरान यूं तो उपवास रहने की परम्परा है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की बस्तर में एक ऐसा साधक भी है जो एक ही जगह पर पूरे नौ दिनों तक भूखे प्यासे बैठा रहकर कठोर तपस्या में लीन रहता है. ये साधना भी खुद के लिए नहीं बल्कि बस्तर दशहरे पर्व के निर्विघ्न संपन्न होने की कामना लिए होती है.
जी हां बस्तर में पिछले 610 सालों से मनाये जा रहे दशहरा पर्व की ‘जोगी बिठाई’ की रस्म आज अदा की गई. यही वो रस्म है जिसमें साधक को नौ दिनों की निर्जला तपस्या के लिए विधि पूर्वक बैठाया जाता है. साधक को जोगी कहा जाता है. हल्बा जनजाति समाज का युवक ही इस परंपरा का निर्वहन करता है. ऐतिहासिक सिरहासार भवन में जोगी एक गड्ढे में बैठता है. जानकारी के अनुसार बस्तर दशहरे की शुरुआत सैकड़ों वर्ष पूर्व एक योगी ने की थी जिसने इसी तरह दशहरे के निर्विघ संपन्न होने की कामना की साथ साधना में बैठ गया था. जब राजा को यह बात पता चली तो राजा ने योगी को सम्मानित किया और साधना की यह प्रक्रिया बस्तर दशहरे की परंपरा बन गई.बता दें कि बस्तर का दशहरा 75 दिनों तक मनाया जाता है और इसमें लाखों की संख्या में आदिवासी समेत सभी समाज समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं. बस्तर का दशहरा रावण के वध का नहीं बल्कि आदिशक्ति मां दंतेश्वरी के पूजन का पर्व है. 75 दिनों की अवधि में इसकी 12 से अधिक महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती हैं और इतने बड़े आयोजन में कोई अनहोनी न हो इसलिए जोगी साधना में लीन रहता है.