यहां झूले में विराजती हैं मां आदिशक्ति, सदियों पुराना है ‘झूले वाली माता’ का मंदिर
(देवराज सिंह चौहान) नई दिल्ली: बैतूल के चिचोली तहसील की में चारों ओर स्थापित आध्यात्मिक शक्ति केंद्रों में शामिल हरदू का झूले वाली माता मंदिर असंख्य देवी भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है. चिचोली नगर से 9 किलोमीटर दूर स्थित इस देवी स्थल का इतिहास सदियों पुराना है. सदियों से इस स्थान में लकड़ी से बनी देवी की प्रतिमा को देवी भक्त शक्ति के रूप में पूजते चले आ रहे हैं. मान्यता है कि यहां जो भी खाली हाथ आता है, अपनी झोली भरकर जरूर ले जाता है.
मान्यताओं और किदवंतियों के अनुसार सदियों पूर्व यह देवी स्थल सागौन के हरे भरे वनों से आच्छादित था. प्राकृतिक माहौल में यहां देवी की प्रतिमा गुफा के अंदर लकड़ी से बने झूले में निंद्रासन में विद्यमान थी. कालांतर में लोगों को इस देवी के स्थान के बारे में पता चला तो जन सहयोग से इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कर ‘झूले वाली माता’ की मूर्ति को उसी अवस्था में झूले में रखकर मंदिर में स्थापित किया गया. झूले में विराजित देवी को ‘झूले वाली माता’ के नाम से पुकारा जाता है. माता का आशीर्वाद पाने हजारों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस स्थान पर पहुंचकर झूले वाली माता के दर्शन कर अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति पाते हैं. शारदीय नवरात्र में भी लोगों के प्राकृतिक देवी स्थान पर पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है. सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार अष्टमी के दिन यहां पुजारी द्वारा देवी की प्रतिमा को स्नान कराकर देवी का नया श्रृंगार किया जाता है. इलाके में मौजूद मकडाई रियासत का राजपरिवार भी इन्हें अपनी कुलदेवी मानकर पूजता है. शक्ति के इस अवतार को आदिवासी समाज खास महत्व देता है.