भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा पोषण का आहार, बच्चे हो रहे कुपोषण का शिकार
(देवराज सिंह चौहान) जयपुर: जिले में 4 हजार 251 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इनमें बाल विकास की सुनिश्चितता और कुपोषण खत्म करने के लिए हर साल 36 करोड़ रुपये का बजट दिया जाता है. बावजूद इसके जयपुर जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या 30 हजार से ज्यादा है. ये डवारनी तहरीर सिर्फ जयपुर के नौनिहालों की हैं जहां से पूरा सरकारी तंत्र चलता है.
आंगनबाड़ी केंद्रों को बाल विकास एवं कुपोषण के मद्देनजर हर साल आवंटित होने वाले बजट को देखें तो जयपुर जिले के हिस्से में करीब 36 करोड़ 25 लाख रुपये आते हैं, इतने पैसे खर्च होने के बाद भी विभाग कुपोषण के पाप को दूर नहीं कर पा रहा है. इससे साफ है कि अफसर पैसों के लेनदेन में फंसे हैं. सरकार के आंकड़ों की आंखों में झांकें तो हालात हाथों से निकले नजर आते हैं.
जयपुर जिले में समेकित बाल विकास सेवाएं विभाग के जरिए 4 हजार 251 आंगनबाड़ी केंद्रों पर 3 से 6 साल तक के 62 हजार 768 बालक और 60 हजार 266 बालिकाएं आती हैं. जिन्हें आंगनबाड़ी में पोषाहार दिया जाता है कि उनकी सेतह बनेगी, भारत मजबूत होगा लेकिन राजधानी जयपुर जिले में 30 हजार 783 बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं जबकि 222 बच्चे अतिकुपोषित पाए गए हैं.
जयपुर जिले में 30 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चों का आंकड़ा सामने आया है इसके अलावा झुग्गी, झोपड़ियों और मलिन बस्तियों के बच्चों की नब्ज पर हाथ रखें तो आंकड़ों का पैमाना फट जाएगा. जयपुर में करीब 31 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं. ये उस शहर का आंकड़ा है जहां से योजनाएं निकलती है दवाएं निकलती हैं. बच्चों का दूध दही रस मलाई, सेब, बादाम, काजू किशमिश नहीं मिलता है बल्कि आंगनबाड़ी केन्द्रों पर सूखा पोषाहार के तहत रोजाना 55 ग्राम गुड़-चना/फुली,चना, गुड़ या 50 ग्राम हलवा हफ्ते में दो-दो दिन दिया जाता हैवहीं गर्म पोषाहार में रोजाना 50 ग्राम मूंग-चावल की खिचड़ी या मीठा दलिया दिया जाता है, रोज़ाना एक बच्चे पर 8 रुपये खर्च होते हैं जिससे जिले में हर महीने पोषाहार देने पर 3,2,10,720 रुपये खर्च किए जा रहे हैं. यदि उसके बावजूद भी यह हाल है तो क्या कहा जाए, किससे कहा जाए, कौन सुनेगा कि किस तरह भ्रष्टाचार की पतीली में अफसर बच्चों की भूख पकाते हैं और बच्चों के हक का तड़का लगाकर मासूम की भीख खा जाते हैं.
मौजूदा आंकड़ा सोचने पर मजबूर करता है कि हर महीने बच्चों पर 3 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और फिर भी 30 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. बच्चे बीमार नहीं हुए उन्हें बीमार किया गया.