राजनैतिक प्रतिशोध के चलते बनवाया़, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकरण को किया निरस्त
उज्जैन। राजनैतिक प्रतिशोध से प्रेरित होकर विधायक द्वारा कांग्रेस नेता दिनेश जैन ‘बोसÓ के विरुद्ध जो अवैध उत्खनन का प्रकरण बनवाया गया था उक्त प्रकरण को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किया गया है।
उल्लेखनीय है मार्च 2014 में दिनेश जैन ‘बोसÓ के विरुद्ध अवैध उत्खनन के संबंध में कलेक्टर जिला उज्जैन को शिकायत की गयी थी, उस पर तो खनिज विभाग व कलेक्टर ने कोई कार्यवाही नहीं की, अपितु विधायक बहादुरसिंह चौहान ने एक झूठी शिकायत दिनेश जैन ‘बोसÓ के विरुद्ध खनिज अधिकारी व कलेक्टर जिला उज्जैन को देकर के दिनेश जैन ‘बोसÓ के विरुद्ध अवैध उत्खनन का पंचनामा बनवाया और उसमें यह उल्लेखित किया गया कि दिनेश जैन ‘बोसÓ ने स्वीकृत क्षेत्र से अधिक पर उत्खनन कर लगभग 31 करोड़ रुपये की राशि का नुकसान शासन को कारित किया है। यह पंचनामा खनिज अधिकारी जिला उज्जैन, एसडीओ महिदपुर व अन्य के द्वारा तैयार किया गया था। सूचना पत्र मिलने पर सूचना पत्र का जवाब दिनेश जैन ‘बोसÓ की ओर से यह दिया गया कि उसने कोई अवैध उत्खनन नहीं किया है, स्वीकृत क्षेत्र में ही उसके द्वारा उत्खनन का कार्य किया गया है, क्योंकि वह पट्टाधारी है और उसका पट्टा सन 2020 तक वैध है। किसी साक्षी या खनिज अधिकारी के कथन से भी प्रकरण प्रमाणित नहीं हो रहा था, इसके बावजूद भी अनुविभागीय अधिकारी महिदपुर ने यह आपत्ति होते हुए भी कि जो अनुविभागीय अधिकारी पंचनामे में थे उन्हीं के द्वारा प्रकरण का विचारण किया गया और अवैध उत्खनन को किसी भी साक्षी ने प्रमाणित नहीं किया है। इसके बावजूद भी विधानसभा में विधायक बहादुरसिंह चौहान द्वारा प्रश्न लगा देने से दिनेश जैन ‘बोसÓ को सत्ताधारी दल के विधायक के दबाव व प्रभाव में अवैध उत्खनन का 32 करोड़ रुपये का उत्तरदायी ठहराया। अपर आयुक्त संभाग उज्जैन ने भी निष्पक्ष रूप से आदेश न देते हुए राजनैतिक दबाव में आदेश पारित किया और राजस्व मंडल ग्वालियर ने भी नियत तारीख पेशी के पूर्व प्रकरण में सुनवाई करते हुए अनुविभागीय अधिकारी के आदेश को स्थिर रखा, जिसके विरुद्ध दिनेश जैन ‘बोसÓ के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर के समक्ष रिट याचिका प्रस्तुत की गयी थी और उक्त रिट याचिका में माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा की गयी सम्पूर्ण कार्यवाही को स्पष्टत: अवैधानिक ठहराया था परन्तु 20 प्रतिशत की राशि जमा करने का आदेश स्थगन के सम्बन्ध में जो दिया गया था उसे स्थिर रखा था जिसके विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एस.एल.पी. प्रस्तुत की गयी थी और ९ दिसम्बर को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माननीय उच्च न्यायालय के 20 प्रतिशत राशि जमा करने के आदेश को भी निरस्त कर दिया है।