यहां केवल महिलाएं ही करती हैं पितरों का पिंडदान, पुरुषों को नहीं है इजाजत
(देवराज सिंह चौहान) मिर्जापुर: शास्त्रों के अनुसार पुरुषों को ही पिंडदान व तर्पण का अधिकार मिला हुआ है. वहीं, विन्ध्य क्षेत्र में परंपरा के अनुसार मातृ नवमी को महिलाओं ने अपने पूर्वजों को जल अर्पित कर तर्पण किया. मान्यता है कि सीता कुंड पर माता सीता ने वनवास के दौरान तर्पण किया था. तभी से यह परंपरा आज तक चली आ रही है. अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस स्थान पर केवल महिलाएं तर्पण करती हैं.
धर्मनगरी काशी एवं प्रयाग के मध्य स्थित विन्ध्य पर्वत के ईशान्य कोण पर गंगा नदी के किनारे माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ और अन्य पितरों की प्रसन्नता के लिए तर्पण किया था. भगवान राम के साथ आकर माता सीता ने जिस स्थान पर तर्पण किया, वह स्थान अब सीता कुंड के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को स्वर्ग प्राप्ति के लिए जाते समय प्रथम पिंडदान अयोध्या में सरयू तट पर, दूसरा प्रयाग के भारद्वाज आश्रम, तीसरा विन्ध्य के राम गया घाट पर और चौथा काशी के पिशाचमोचन पर कर फाल्गू नदी के तट पर गया में पिंडदान किया था. उसी समय माता सीता ने सीता कुंड का सृजन कर पुरखों का तर्पण मीरजापुर के विन्ध्याचल की पहाड़ी पर किया था. आज भी उसी परंपरा के अनुसार महिलाएं पितरों का तर्पण करती हैं. इससे पूर्वज प्रसन्न होते है.
बता दें कि भारतीय शास्त्र परंपरा के अनुसार पुत्रों को ही पिंडदान व तर्पण का अधिकार है. इसमें भी सबसे बड़े व सबसे छोटा पुत्र द्वारा अर्पित किया गया जल ही पूर्वजो तक पहुंचता है. पितृ ऋण से मुक्ति व अपने पितरों को विभिन्न योनि में भटकने के बजाय उनकी तृप्ति के लिए शास्त्रों में पिंडदान बताया गया है. पूर्वजों के प्रसन्न होने से सभी देवता प्रसन्न होते है. विन्ध्य क्षेत्र में सीता कुण्ड परम पवन स्थान है, जहां माता सीता ने अपने पूर्वजो का तर्पण व पिंडदान किया था.