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मध्यप्रदेश: देशभर में प्रसिद्ध हैं ये गणेश मंदिर, विदेशों से दर्शन करने आते हैं पर्यटक

(देवराज सिंह चौहान) नई दिल्ली: देश का दिल मध्यप्रदेश ट्रैवल डेस्टिनेशन से भरा पड़ा है और यहां के कई ऑफबीट जगहों की प्रसिद्धि विदेशों में भी फैली हुई है. 2 सिंतबर को गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से शुरू हो चुका है. इसी के साथ गणेश मंदिरों में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. प्रदेश के कई प्राचीन मंदिरों में सालभर भक्त दर्शन करने के लिए आते रहते हैं लेकिन चतुर्थी पर यहां की रौनक कई गुना बढ़ जाती है. ऐसे में जानिए मध्यप्रदेश के इन फेमस मंदिरों की महिमा के बारे में.

बड़ा गणेश का मंदिर, उज्जैन
उज्जैन महाकाल की नगरी है और इस शहर के हर गली मोहल्ले में मंदिरों की भरमार है. उज्जैन में स्थित बड़ा गणेश का मंदिर काफी मशहूर है. लाल रंग के बड़े से गणेश पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के साथ यहां विराजमान हैं. इस मंदिर में पंचमुखी हनुमान भी मौजूद हैं. इस मंदिर खास बात ये है कि यहां पर ज्योतिष और संस्कृति भाषा का ज्ञान भी दिया जाता है.
खजराना गणेश मंदिर, इंदौर
इंदौर के खजराना गणेश मंदिर की लीला भक्तों के बीच काफी मशहूर है. खजराना गणेश मंदिर का निर्माण 1735 में होलकर वंश की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था. मान्यताओं के अनुसार श्रद्धालु इस मंदिर की तीन परिक्रमा लगाते हैं और मंदिर की दीवार पर धागा बांधते हैं. भक्त मन्नत लेकर भगवान गणेश की प्रतिमा की पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत होने पर सीधर स्वातिक बनाते हैं. इसी के साथ गणेशजी को मोदक का भोग लगाया जाता है. इस मंदिर में गणपति केवल सिंदूर से स्थापित किए गए हैं.

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पोहरी गणेश मंदिर, शिवपुरी
पोहरी किले में बना प्राचीन गणेश मंदिर लगभग 200 साल पुराना है. बाला बाई सीतोले ने 1737 में इस मंदिर का निर्माण कराया था. बता दें कि इस मंदिर की मान्यता है कि मंदिर में जो भी भक्त नारियल रखकर मनोकामना मांगते हैं बप्पा उसे पूरा कर देते हैं. पोहरी गणेश मंदिर की विशेषता है कि यहां कुंवारी लड़की शादी के लिए नारियल रख देती है तो उनकी शादी जल्दी हो जाती है.
चिंतामन गणेश मंदिर, सीहोर
मध्यप्रदेश के सीहोर में स्थित चिंतामन गणेश मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रमादित्य ने की थी लेकिन इसकी मूर्ति उन्हें स्वयं गणपति ने दी थी. प्रचलित कहानी के अनुसार राजा विक्रमादित्य के स्वप्न में बप्पा आए और पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया. राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया. इस मंदिर में भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं.