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बच्चों को कुपोषण से नहीं मिल रही राहत, धरातल पर फेल हुई सरकारी योजनाएं

(देवराज सिंह चौहान)  बारां: जिले को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए संचालित सरकारी योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं. स्थिति यह है कि जिले में अब भी 6,658 बच्चे कुपोषित हैं. वहीं 717 के लगभग बच्चे अतिकुपोषित की श्रेणी में हैं. इनमें से जिले के अस्पतालों में संचालित एमटीसी में सिर्फ 20 बच्चे ही भर्ती हैं.

वहीं एसीएफ, अडानी फाउण्डेशन, वर्ड विजन सहित आधा दर्जन स्वयंसेवी संस्था जिले में कुपोषण मिटाने के लिए कार्य कर रही हैं और हर साल करोड़ों की राशी खर्च की जाती है लेकिन कुपोषण का दंश मिटने का नाम नही ले रहा है. कुपोषण उपचार केन्द्र में भर्ती बच्चे के परिजनों का कहना है कि आंगनबाड़ी केन्द्रों पर सिर्फ दलिया मिला है और पोषण के लिए अन्य पोषाहार नहीं दिया जाता है. वही गांवों में अभी भी कई कमजारे बच्चे हैं.

दो साल पहले जिले में कुपोषण से बच्चों की मृत्यु के मामले सामने आने के बाद राज्य सरकार की ओर से पूरक पोषाहार में बढ़ोतरी, अस्पतालों में एमटीसी संचालित कर बच्चों को कुपोषण से बाहर लाने के प्रयास प्रारंभ किए गए थे. सरकार की ओर से पूरक पोषाहार वितरण के लिए 1,361 आंगनबाड़ी केंद्र, 217 मिनी आंगनबाड़ी केंद्र, 44 मिनी आंगनबाड़ी सहरिया क्षेत्र में संचालित हैं. जहां पर लगभग 10,0322 बच्चों को पूरक पोषाहार का वितरण किया जाता है. इसके बाद भी स्थिति यह है कि 6,658 के लगभग बच्चे कुपोषण की श्रेणी से बाहर नहीं निकल सके हैं. वहीं 717 बच्चे अतिकुपोषित की श्रेणी में बने हुए हैं.

जिला अस्पताल सहित 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कुपोषण उपचार केंद्र (एमटीसी) संचालित की जा रही है. इनमें जिला अस्पताल शाहाबाद में 20-20 बैड की एमटीसी है. इसके अलावा अन्य स्थानों पर 4 से 10 बैड की एमटीसी संचालित है. जिले में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या भले ही 717 है लेकिन इन एमटीसी में सिर्फ 20 ही बच्चें भर्ती हैं. सबसे अधिक बच्चे आदिवासी सहरिया जनजाति क्षेत्र में सर्वाधिक कुपोषित बच्चे होते हैं. वहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में यह समस्या रहती है. सरकार के प्रयासों के बाद भी जिले को कुपोषण के दंश से मुक्ति नहीं मिल पा रही है. आंगनबाड़ी केंद्रों पर पूरक पोषाहार के रूप में बेबी मिक्स, गुड़-चना, नाश्ता आदि देने के बाद भी बच्चे कुपोषण से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. कई जगह स्वयं सहायता समूह की ओर से दिया जाने वाला पोषाहार भी गुणवत्तायुक्त नहीं होता है और जिला से कुपोषण का कंलक मिटने का नाम नही ले रहा है.

देश विदेश में कुपोषण से मौतों को लेकर चर्चा में बना रहना बारां जिला आज भी लाख प्रयास के बाद भी कुपोषण के दंश से मुक्त नहीं हो रहा है. अब देखने वाली बात है कि कब बारां जिलें से कुपोषण का दंश मिट पाता है.