माइक्रोडॉट्स के साथ आएंगी गाड़ियां, चोरी हुई तो पुर्जे भी खोजे जा सकेंगे
(देवराज सिंह चौहान) नई दिल्ली: देश में हर साल लगभग 2.50 लाख से अधिक गाड़ियां चोरी होती हैं. इनमें से करीब आधे वाहनों के पार्ट्स निकालकर दूसरे वाहनों में लगा दिए जाते हैं. देश में गाड़ियों की चोरी खत्म करने के लिए सरकार ने एक जबरदस्त कदम उठाया है. सरकार का प्लान है कि देश में गाड़ियां अब इनविसिबल (अदृश्य) माइक्रोडॉट्स के साथ आएंगी.
माइक्रोडॉट की तकनीक से गाड़ी चोरी से बचाने एवं फर्जी कल-पुर्जों के इस्तेमाल पर रोक लगाने में मदद मिलेगी. वहीं गाड़ी को टुकड़ों में बांटने के बावजूद ये पता चल जाएगा कि वह चोरी की है या नहीं. उसका असली मालिक कौन है. सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट जारी किया है, जिसके तहत सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट में संसोधन के जरिए गाड़ियों और उनके पार्टस, हिस्सों और दूसरे कलपुर्जों में इनविसिबल (अदृश्य) माइक्रोडॉट लगाए जाएगें. सरकार इस ड्राफ्ट पर पब्लिक ओपनियिन भी ले रही है.
इनिविसिबल फोर्स बचाएगी आपकी गाड़ी
लाखों की गाड़ी को सुरक्षित रखने का फूलप्रूफ प्लान चाहते हैं तो ये खबर आपको राहत दे सकती है. जी हां, केंद्र सरकार ने गाड़ियों की चोरी खत्म करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने गाड़ी और उसके पार्टस की चोरी से बचाने के लिए माइक्रोडॉट तकनीक का इस्तेमाल करने का प्लान बनाया है. माइक्रोडॉट तकनीक के जरीए गाडियों की चोरी के बाद ट्रेस करना बेहद आसान हो जाएगा. गाडी चोरी करने वाले पर भी शिंकजा कसा जा सकेगा.
सरकार ने इस खास तकनीक को इस्तेमाल में लाने के लिए सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट में संसोधन करने केे लिए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है. 30 दिन के भीतर लोगों से प्रतिक्रिया, सुझाव और आपत्ति ले रही है. माइक्रोडॉट तकनीक का नियम लागू हो जाता है तो ऑटोमोबाईल मैन्युफैक्चर गाड़ी बनने की प्रक्रिया के वक्त ही गाड़ी के बाहरी बॉडी पर और अंदर के पार्टस पर माइक्रोडॉट लगाकर उसे पूरी तरह थेफ्ट प्रूफ बनाकर बाजार में बेचा जा सकेगा. ‘माइक्रो-डॉट टेक्नोलॉजी’ एंटी थेफ़्ट सिक्यूरिटी सिस्टम है…इस तकनीक से गाड़ी चोरी हे जाने के बाद ट्रेस करने में अहम रोल निभाती है.
क्या होते हैं माइक्रोडॉट
1.माइक्रो-डॉट 1 मिमी या 0.5 मिमी के आकार के होते हैं. यानी बहुत छोटे. ये आम तौर पर पॉलिएस्टर से बने होते हैं.
2. माइक्रोडॉटस पर लेजर की मदद से व्हेकील आइडेंटिफीकेशन नंबर (VIN ) या पर्सन आइडेंटिफीकेशन नंबर (PIN) संख्या लिखी जाएगी ..जिसे माइक्रोडॉटस पर 15 साल तक पढा जा सकता है ..
3. माइक्रोडॉटस को हजारों की संख्या में गाडी में स्प्रे कर दिया जाता है ..न केवल गाडी के बाहरी भाग में जिसे पेंट करके बदला जा सकता है , बल्कि अंदरूनी भागों में जैेसे- इंजन और कारबोरेटर तक में भी, जहां पहुंचना और इन माइक्रो-डॉट्स को हटाना, बदलना या मिटाना एक चोर या उसकी किसी मशीन के लिए असंभव होगा..
4.माइक्रो-डॉट इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटराईज़्ड नहीं होते, इसलिए इनमें एंटी थेफ़्ट सिस्टम या जीपीएस की तरह बंद (शट डाउन) नहीं किया जा सकता, इसे वायरस से करप्ट नहीं किया जा सकता या इसके लिए बैटरी वगैरह का ऑन होना या इसे चार्ज़ करना नहीं होता.
5.माइक्रोडॉट को नंगी आंखों से देख पाना नामुमकिन है ..इन्हें अल्ट्रावयलेट किरणों की मदद से देखा जा सकता है …माइक्रोडॉट पर लिखे को़ड को पढ़ने के लिए ‘अल्ट्रावायलेट मैग्निफायर’ का इस्तेमाल करना पडता है ..
6.माइक्रोडॉट तकनीक से गाड़ी पीरी तरह से जल जाने या टुकड़ों में बांटने के बावजूद ये पता चल जाएगा कि वह चोरी की है या नहीं और उसका असली मालिक कौन है.
7. कार ,ट्रक और बस में 10हजार माइक्रोडॉटस और बाइक में 5000 माइक्रोडॉट का इस्तेमाल होगा..
कैसे काम करती है तकनीक ?
जितनी एडवांस तकनीक है उससे आसान इसका इस्तेमाल है.. माइक्रोडॉट टेक्कोनॉलजी के एक्सपर्ट विक्रम गुप्ता के मुताबिक ” माइक्रोडॉट को गाड़ी के लगभग हर हिस्से में लगा दिया जाता है, जिसके चलते गाड़ी के कितने भी टुकड़े कर दिए जाएं, लेकिन हर टुकड़े पर एक ना एक माइक्रोडॉट रहता ही है. माइक्रोडॉट को कंप्रेसर और ग्लू गन का इस्तेमाल करके गाड़ी के ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर और यहां तक कि इंजन और सीट आदि में भी स्प्रे कर दिया जाता है. ऐसे में अगर एक भी माइक्रोडॉट लगा रहा तो यह पता चल जाता है किगाड़ी का असली मालिक कौन है और चोरी करने वाला पुलिस की गिरफ्त में आ जाएगा ”
भारत में हर साल 2.14 लाख गाड़ियां होती हैं चोरी
भारत में सालाना लगभग 2.14 लाख गाडियों की चोरी होती हैं. दिल्ली में ही हर घंटे लगभग 4 से ज़्यादा गाडियां चोरी होती हैं. मुंबई, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश कार चोरी के मामलों में सबसे आगे है. वाहन-चोर वाहनों को चोरने के बाद सीधे नहीं बेचते बल्कि उसे डिसेंबल (डिसमेंटल) करने के बाद इंजन और मंहगें हिस्सों को अलग-अलग बेचते हैं…
हर घंटे 4 गाडियां चोरी होती हैं
राजधानी में हर घंटे करीब 4 गाड़ियां चोरी होती हैं.
15 अगस्त 2018 तक कुल 27,780 गाड़ियां चोरी होने के मामले सामने आ चुके हैं.
चोरों की फेवरेट गाड़ी है मोटरसाइकिल. जून 2018 तक करीब 12,689 मोटरसाइकिलें चोरी हो चुकी हैं, जो कुल गाड़ियां को करीब 60 फीसदी है.
पिछले साल यानी 2017 में कुल 40,972 गाड़ियां चोरी हुई थीं.
2016 में 38,644 गाड़ियां चोरी होने के मामले सामने आए, यानि 100 गाड़ियां हर दिन वहीं यूपी में 34480 गाड़ियां और महाराष्ट्र में 22435 गाडियों की चोरी हुईं.
कई बड़े-बड़े देशों में, छोटे-छोटे माइक्रो-डॉट्स लगते आए हैं
इस तकनीक का सबसे अच्छा उपयोग साउथ अफ्रीका में हो रहा है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चिली, ताइवान, कनाडा ,अमेरिका और यूरोपियन यूनियन जैसे कई विकसति और विकासशील देश ‘माइक्रो-डॉट्स तकनीक’ की दुनिया में कदम रख चुके हैं. माइक्रो-डॉट्स आपकी कार की ख़ूबसूरती में किसी प्रकार का खलल पैदा नहीं करते, लेकिन आपकी गाड़ी की सुरक्षा की गांरटी जरूर दे सकते है.