एक गांव की जिद के आगे झुका पहाड़
अलीराजपुर: (देवराज सिंह चौहान) अपने दम पर पहाड़ का सीना काटकर रास्ता बनाने वाले बिहार के दशरथ मांझी की कहानी तो आपने सुनी ही होगी. देश में दशरथ मांझियों की कमी नहीं है. अब आपको मध्य प्रदेश के ऐसे ही कुछ ग्रामीणों की कहानी बताते हैं जिन्होंने अपने बच्चों के भविष्य के लिए पहाड़ काटकर 7 किलोमीटर लंबी सड़क बना दी. ये गांव है मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर ज़िले का अंजनवाड़ा .अलीराजपुर जिले के सबसे ऊंचे इलाके में पहाड़ पर बसे इस गांव में साढ़े तीन सौ आदिवासी रहते हैं. रास्ता न होने की वजह से उनकी जिंदगी बहुत मुश्किल थी.
समस्याओं का ‘पहाड़’ और नदी की बाधा
दरअसल, सरदार सरोवर बांध बनने के बाद ग्रामीणों के पहाड़ के नीचे बने खेत डूब गए थे. गांव तक सिर्फ नर्मदा नदी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता था. गांव तक नाव के जरिए पहुंचने में भी दो से तीन घंटे का समय लग जाता था. सबसे बड़ी समस्या स्कूल जाने वाले बच्चों को लिए थी. स्कूल गांव से पांच किलोमीटर दूर है और वहां भी नदी के रास्ते ही पहुंचा जा सकता है. यही नहीं गांव के युवाओं की शादियां भी इसी वजह से नहीं हो रहीं थीं। आखिरकार, ग्रामीणों ने अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पहाड़ को चुनौती देने की ठानी और पहाड़ काट कर 7 किलोमीटर लंबा रास्ता बना दिया.
गेती और फावड़े से बना दी सड़क
आदिवासियों ने बिना सरकारी मदद के 7 किमी सड़क का निर्माण कर दिया.हालांकि अब शासन से उनकी एक मांग भी है। ग्रामीण चाहते हैं कि सरकार उनके बनाए कच्चे रास्ते को पक्का बना दे ताकि बारिश के दिनों में उन्हें परेशानी का सामना न करना पड़े. ग्राम पंचायत के सचिव सकरजा राजेश का कहना है कि पहले नाव से भी ककराना गाँव से 3 घंटे और सकरजा गाँव से 2 घंटे से ज्यादा समय लगता था लेकिन गाँववालों की मेहनत और हिम्मत ने जिंदगी कुछ आसान कर दी है. बड़ी बात ये है कि लोगों ने इस रास्ते को भारी मशीनों से नहीं बल्कि गेती और फावड़े से तैयार किया. ये सड़क सात किलोमीटर लंबी और 3 मीटर चौड़ी है.
सड़क के रास्ते आई उम्मीद…
गांववालों को उम्मीद है कि सड़क बन जाने के बाद उनकी जिंदगी में कई बदलाव हो सकते हैं. मसलन, बच्चों के लिये बना सरकारी स्कूल 5 किलोमीटर दूर है लेकिन उसका कोई भवन नहीं है. ये स्कूल एक झोपड़े में अतिथि शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहा है. गांव में पीने का साफ पानी भी बड़ी समस्या है. लोगों की दलील है कि सड़क बनने के बाद अब गांव तक पीने का पानी पहुंचाना ज्यादा आसान है.