डॉ. अम्बेडकर के चिन्तन की पोषकता ही सामाजिक समानता की बुनियाद है : डॉ. विकास शर्मा
उज्जैन। डॉ. अम्बेडकर प्रखर बुद्धिजीवी, अनन्य लेखक शोधवेत्ता, उद्धारकर्ता, समाज-सुधारक और मानवतावादी विचारक हैं। बाबा साहेब धर्म को समानता का माध्यम मानते थे, वे कहते थे कि ‘धर्म व्यक्ति के लिए हैं, व्यक्ति धर्म के लिए नहीं है।Ó किसी भी देश का विकास वहाँ शिक्षा और सभ्यता के माध्यम से सम्भव होता है। अत्याधुनिक भारत के राजनीति चिन्तन में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना में डॉ. अम्बेडकर भारत के महान् सामाजिक सर्वहारा के रूप में सदैव अविस्मरणीय रहेंगे।
उक्त विचार चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ (उ.प्र.) के अंग्रेजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विकास शर्मा ने ‘डॉ. अम्बेडकर स्मृति व्याख्यानमाला में डॉ. अम्बेडकर का भारतीय राजनीति व साहित्यिक परिदृश्य में प्रभावÓ विषय पर व्यक्त किए।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा भारतरत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर के 64वें महापरिनिर्वाण दिवस पर आयोजित व्याख्यानमाला में प्रो. विकास शर्मा ने बाबा साहब की जीवन-यात्रा का शोध-परक संदर्भ सहित विश्लेषण करते हुए कहा, आधुनिक भारत की संरचना में सामाजिक विषमता के स्थान पर सामाजिक समानता की बुनियाद में डॉ. अम्बेडकर के चिन्तन की पोषकता ही फलीभूत होगी। डॉ. अम्बेडकर ने परम्परात्मक समाज में आमूल परिवर्तन हेतु प्रयत्न किए। बहिष्कृत भारत एवं मूकनायक के प्रकाशन द्वारा सामाजिक चेतना हेतु उन्होंने प्रयास किए। दरअसल बाबा साहेब एक बेहतर समाज की स्थापना के लिए सामाजिक प्रजातंत्र की स्थापना करना चाहते थे, जहाँ व्यक्ति को विचार की, अभिव्यक्ति की, शिक्षा की, आत्म विकास व आजीविका के चुनाव की स्वतंत्रता हो। डॉ. विकास शर्मा ने कहा डॉ. अम्बेडकर नारी को राष्ट्र निर्मात्री कहते हैं। उन्होंने कहा नारी को जाग्रत किए बिना राष्ट्र का विकास असंभव है। बाबा साहेब ने भारतीय नारी के उन्नति के सभी द्वार खोल दिए जिससे भारतीय नारी को मानवीय अधिकार प्राप्त हो और वह सुरक्षित जीवन जी सके। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो. बी.के. शर्मा ने कहा कोई व्यक्ति जन्म से नहीं कर्मों से महान् बनता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर अपने कर्मों से महान् बने। उनका चिन्तन, उनका जीवन सार रूप में ग्रहण करना है। कोई भी व्यक्ति देश से बड़ा नहीं है। प्रो. शर्मा ने कहा डॉ. अम्बेडकर ने समकालीन समाज की स्थिति को रेखांकित करते हुए कहा शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो क्योंकि बाबा साहेब का मानना था। शिक्षा ही संघर्ष के लिए सामर्थ्यवान बनाती है। अध्यक्ष प्रो. शर्मा ने कहा प्रकृति को अपना सर्वस्य सर्व के लिए है। व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है। प्रो. शर्मा ने कहा उपनिषद् अनुसार इस संसार में जो कुछ भी है वह एक तत्त्व से ढंका हुआ है। इस पर किसी एक का अधिकार नहीं है। त्यागपूर्वक उपभोग करो, किसी के अधिकार को नहीं छीनो। किसी पर लोभ-लालच दृष्टि नहीं डालो। इस आधार पर असमानता का प्रश्न ही नहीं उठता। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतरत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर पर माल्यार्पण, पुष्पांजलि व ज्योति आलोकन से हुई। स्वागत भाषण व विषय प्रवर्तन डॉ. अम्बेडकर पीठ के प्रभारी निदेशक डॉ. एस.के. मिश्रा ने किया। अतिथि परिचय, संचालन व आभार पीठ की शोध अधिकारी डॉ. निवेदिता वर्मा ने किया। कार्यक्रम में अंग्रेजी विभाग की आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अचला शर्मा, प्रो. एस.के. शुक्ला, विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र विभाग, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, डॉ. जी.आर. गांगले, डॉ. अंजना पाण्डेय, डॉ. रूबल वर्मा, पं.ज.ने. प्रबंध संस्थान के निदेशक डॉ. डी.डी. बेदिया, एम.पी.आई.एस.एस.आर. के डॉ. मनु गौतम, डीएसडब्ल्यू डॉ. आर.के.अहिरवार, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला के डॉ. संग्राम भूषण, डॉ. जितेन्द्र पोरवाल, डॉ. धर्मेन्द्र सिंह, संस्कृत, वेद, ज्योतिष अध्ययनशाला के प्राध्यापकगण व दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला के प्राध्यापकगण विशेष रूप से उपस्थित थे।