दिव्यांग बच्चों के लिए 5657 सीटें, ऐप्लिकेशन बस 44
प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी, केजी, क्लास 1 की खाली 5657 सीटों के लिए दिव्यांग स्टूडेंट्स से सिर्फ 44 ऐप्लिकेशन मिली हैं। ऐकडेमिक सेशन 2019-20 में चौथी कोशिश के बाद शिक्षा निदेशालय को पैरंट्स से रिस्पॉन्स न मिलना, दिव्यांग स्टूडेंट्स की शिक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है।क्या सभी दिव्यांग स्टूडेंट्स को ऐडमिशन मिल चुका है या फिर ऐडमिशन प्रक्रिया का सिस्टम फेल हो रहा है? शिक्षा निदेशालय ने पैरंट्स को फिर से ऑनलाइन अप्लाई करने का मौका दिया है। आखिरी तारीख आज यानी 3 अक्टूबर है और कंप्यूटराइज्ड ड्रॉ 10 अक्टूबर तक हो सकता है लेकिन इस साल भी बड़ी तादाद में सीटें खाली रहने की उम्मीद है।एजुकेशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि ज्यादातर स्कूलों में इन बच्चों के लिए सुविधाएं ही नहीं हैं जबकि दिल्ली हाई कोर्ट बार-बार कह चुका है कि हर स्कूल हर तरह की डिसेबिलिटी वाले बच्चों के लिए इंतजाम करे वरना इनकी मान्यता रद्द की जाए। दूसरी ओर, शिक्षा निदेशालय का कहना है कि एक बार फिर इन सीटों को भरने की कोशिश करेगा, स्कूलों को भी आदेश है कि स्कूल अलॉट होने पर इन बच्चों को मना नहीं किया जाए।राइट टु एजुकेशन ऐक्ट के तहत, प्राइवेट स्कूलों में ईडब्ल्यूएस के लिए 25% सीटें रिजर्व होती हैं और इनमें से 3% सीटें चिल्ड्रन विद डिसएबिलिटीज के लिए रखनी जरूरी है। इस बार प्राइवेट स्कूलों में ईडब्ल्यूएस की सीटें करीब 44000 हैं और इस हिसाब से 1300 सीटें दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए हैं। पिछले साल भी 70 ऐडमिशन तक नहीं हुए जबकि ऐप्लिकेशन करीब 200 थी। निदेशालय ने इन सीटों को भरने के लिए इस साल चार बार राउंड चलाया मगर 80% से ज्यादा स्कूलों में सीटें खाली हैं।एजुकेशन ऐक्टिविस्ट खगेश झा कहते हैं, ‘दिव्यांग बच्चे लाखों हैं, वे आ नहीं रहे हैं, यह कहकर बचा जा रहा है। जो बच्चे आ रहे हैं, उन्हें तक ऐडमिशन नहीं मिल रहा है क्योंकि शिक्षा निदेशालय का ऑनलाइन सिस्टम इतना जटिल है कि पैरंट्स पड़ोस के स्कूल तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। अगर सीटें इतनी खाली हैं तो उन्हें पास के चार-पांच स्कूलों का ऑप्शन क्यों नहीं दिया जा सकता है।’खगेश आगे कहते हैं, ‘कम ऐडमिशन की वजह स्कूलों में सुविधाओं की कमी भी है। जैसे बच्चा मूक-बधिर है मगर स्कूल में बस ब्लाइंड बच्चे के लिए सुविधा है जबकि कोर्ट के आदेश के तहत हर स्कूल में हर बच्चे के लिए सुविधा जरूरी है। हर स्कूल इन्हें ऐडमिशन नहीं देना चाहता क्योंकि उसे स्पेशल एजुकेटर रखने पड़ेंगे। बच्चों को यह कहकर भी स्कूल मना कर देते हैं कि उनके यहां जनरल कैटिगरी की सीटें ही नहीं भरी हैं क्योंकि वे इन्हें फ्री शिक्षा नहीं देना चाहते हैं।’