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विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरे की शुरुआत, महाराजा कृष्णादत्त ने स्वर्ण सिंहासन पर बैठकर लगाया दरबार

(देवराज सिंह चौहान)  मैसूर: कर्नाटक (karnataka) के मशहूर मैसूर दशहरे ( Mysore Dasara) की शुरुआत पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ रविवार को हुई. इस मौके पर मैसूर के महाराज यदुवीर कृष्णादत्त चमराजा (Yaduveer Krishnadatta Chamaraja) ने पूजा अर्चना की और स्वर्ण सिंहासन पर बैठ कर विशेष दरबार भी लगाया.

रविवार को प्रसिद्ध कर्नाटक लेखक एस एल भैरप्पा और मंत्री प्रहलाद जोशी ने इस पारंपरिक उत्सव का उद्घाटन किया. बता दें मैसूर दशहर कर्नाटक का अधिकारिक राजकीय उत्सव है. यह उत्सव दस दिन तक चलता है.यह उत्सव न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है.
इन दस दिनों तक पूरे शहर को सजाया जाता है. मशहूर मैसूर पैलेस 1 लाख बल्बों की रोशनी से जगमगा जाता है. इस साल यह दशहरा 29 सितंबर से लेकर 8 अक्टूबर तक चलेगा.

देवी चामुंडा को समर्पित उत्सव
पूरा देश जहां दशहरा पर राम की रावण पर विजय का पर्व मना रहा होता है. वहीं मैसूर में दशहरा मां चामुंडा द्वारा राक्षस महिसासुर का वध करने पर मनाया जाने वाला पर्व है.

विजयदशमी के दिन मैसूर की सड़कों पर जुलूस निकलता है. इस जुलूस की खासियत यह होती है कि इसमें सजे-धजे हाथी के ऊपर एक हौदे में चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति रखी जाती है. सबसे पहले इस मूर्ति की पूजा मैसूर के रॉयल कपल करते हैं उसके बाद इसका जुलूस निकाला जाता है. यह मूर्ति सोने की बनी होती है. यह जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड, डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं. यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होती है.

इस उत्सव की शुरुआत 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के दौर में हुई थी. इस उत्सव की विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में प्रमुख भूमिका रही है.