आदिशक्तिपीठ हरसिद्धि मैं छाया नवरात्रि उत्सव भक्तों के सर्व कार्य सिद्ध करती है मां हरसिद्ध
उज्जैन ।(संदीप व्यास)सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी आदिशक्ति मां हरसिद्धि 51 शक्तिपीठों में एक है यहां पर प्रतिदिन देशभर से हजारों श्रद्धालु महाशक्ति का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर दीपस्तंभ पर दीपमाला लगवाते है नवरात्रि उत्सव में मां हरसीधी का दरबार झिलमिलाती रोशनी से दमक उठता है।
मां शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्रि देशभर में 29 सितंबर से प्रारंभ हो गया है 51 शक्तिपीठों में से एक उज्जैन की मां हरसिद्धि का दरबार विद्युत रोशनी से जगमगा उठा है मान्यता है कि सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी मां हरसिद्धि के दरबार में प्रतिदिन आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों की गंगा बहती है देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती की कोहनी यहां पर गिरी थी इससे यह 51 शक्तिपीठों में शुमार हो गया इसका खास महत्व 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकाल के होने से बढ़ जाता है शिव शक्ति के दर्शन मात्र से ही मानव को समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है इसी के चलते यहां पर साल भर में होने वाली चैत्र और शारदीय नवरात्रि नवरात्रि पर भक्तों का मेला लगता है और मां का आशीर्वाद लेकर भक्त जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्त होता है सनातन धर्म के अनुसार चार नवरात्रि मानी गई है जिसमें दो गुप्त नवरात्रि होती हैं और दो प्रकट नवरात्रि होती है गुप्त नवरात्रि में मां की विशेष कृपा के लिए साधक विशेष आराधना करते हैं।
शिव शक्ति स्वरूप में है दो दीपमालिका
आदि शक्ति पीठ मां हरसिद्धि के परिसर में प्राचीन काल से ही शिव शक्ति के रूप में 51 फीट ऊंचे दो विशाल दीप स्तंभ है इनमें 1111 दीपक विद्यमान है जोलित करने के लिय 60 लीटर तेल और 4 किलो रूई लगती हैं। इस दीपमाला को प्रचलित करने के लिए उज्जैन में रहने वाले जोशी परिवार लगभग 100 साल से इन दीप स्तभों को जला रहे हैं। मौजूदा समय में मनोहर और राजेंद्र जोशी इस परंपरा को निभा रहे हैं। इसके लिए हरसिद्धि मंदिर प्रबंधन समिति में पहले बुकिंग कराई जाती है। भक्तों में इस दीप को जलाने को लेकर इतनी उत्साह देखने को मिलता है कि लोग प्रमुख् त्यौहार पर साल पर पहले से ही बुकिंग कर लेते हैं।
मां के चरणों में शीश चढ़ाते थे विक्रमादित्य
ऐसा कहा जाता है कि इस दीप स्तंभों की स्थापना अवन्तिका के राजा विक्रमादित्य ने की थी। विक्रमादित्य हरसिंध्धी माता के परम भक्त थे। वह 12 साल में एक बार माता के चरणों में अपना सिर अर्पित करते थे, लेकिन मां कि कृपा उन पर ऐसी थी कि उन्हें फिर से नया सिर मिल जाता था। विक्रमादित्य ने जब 12 वीं बार मां को अपना सिर अर्पित किया तब ऐसा और उनका जीवन लीला समाप्त हो गया। कहते हैं कि आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे हुए मुंड हैं। लोगों का कहना है कि ये उन्हीं के कटे हुए मुंड हैं।
दिन में गुजरात में विराजती है मां हरसिद्धि
मंदिर के पुजारी ने बताया कि किंवदंती के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य युद्ध काल के दौरान गुजरात में थे तब माता का आव्हान किया तो मां गुजरात के पोरबंदर में प्रगट हुई थी और वहां की जनता को सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया था इसी कथा के अनुसार आदि शक्ति मां हरसिद्धि एक बार गुजरात में जाती है और वहां की सुख समृद्धि के लिए भक्तों को दर्शन देती है
भक्त करवाते है दीपमालिका प्रज्ज्वलित
मान्यता है कि दूरदराज से आने वाले भक्तों मां हरसिद्धि के दरबार में अपनी मनोकामना बोलकर जाते हैं और जब उनकी मनोकामना पूर्ण होती है तो नवरात्रि में मां हरसिद्धि के दरबार में शिव शक्ति के स्वरूप में बनी दीप मालिका दीप प्रज्वलित करवाते हैं फिलहाल नवरात्रि से पूर्व ही 9 दिन तक मालिका है बुक रहती है इसके अतिरिक्त समय में भी भक्त मंडल प्रबंध समिति से बुक करवा कर दीपमालिका प्रचलित करवाते हैं