उज्जैन देश

उमा सांझी महोत्‍सव की मोहक प्रस्‍तुतियों ने कला रसिकों का मन मोहा

उज्जैन । श्री महाकालेश्‍वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा 25 सितम्‍बर से प्रारंभ हुए उमासांझी महोत्‍सव के अंतर्गत तीसरे दिवस सायं आरती के बाद सांस्‍कृतिक कार्यक्रम की प्रस्‍तुति मंदिर परिसर में हुई। जिसमें प्रथम प्रस्‍तुति डॉ. राजुल सिंघी के मालवी लोकगीत की हुई। द्वितीय प्रस्‍तुति में कु. आयुर्धा शर्मा व समूह द्वारा लोक नृत्‍य की प्रस्‍तुति दी गई। कार्यक्रम समाहार रंग उत्‍सव संस्‍था उज्‍जैन के मालवा की लोकशैली व लोकगीतों पर आधारित नाटक ”औडका” के मंचन से हुआ।

       प्रथम प्रस्‍तुति में डॅा. राजुल सिंघी व उनके समूह ने पारंपरिक मालवी लोकगीतों की प्रस्‍तुति दी। जिसमें नानी मोटी खटोतनी ने पाया रतना जडिया जी…, कंचन थाल सजाओ अलबेली …., चटके चुमडली ओ चंदा की प्रस्‍तुति के बाद कार्यक्रम को आगे बढाते हुए पारंपरिक मालवी लोकगीतों में म्‍हारा घेरदार घाघरा …..आदि की प्रस्‍तुति दी। प्रस्‍तुति का समापन गणगौर के गीत से किया गया। आपके साथ हारमोनियम पर पं. हरिहरेश्‍वर पोद्दार, बांसुरी पर श्री सुरेन्‍द्र स्‍वर्णकार, तबले पर श्री विनायक शर्मा, ढोलक पर श्री गगन जौहरी, साईड रिदम पर श्री राजेश लड्ढ़ा ने संगत की व सहयोगी स्‍वर श्रीमती उर्मिला शर्मा व श्रीमती निहारिका पांचाल के थे।

       दूसरी प्रस्‍तुति में आयुर्धा शर्मा व समूह के लोक नृत्‍य की हुई। समूह द्वारा कार्यक्रम का प्रारंभ गणेश वंदना चालो गजानन जोसी के यहॉ….से किया गया। उसके पश्‍चात संझा गीतों पर समूह लोकनृत्‍य की प्रस्‍तुति हुई। उसके पश्‍चात कु. आयुर्धा शर्मा द्वारा मालवी लोकगीत पर साहिबा म्‍हाने लई दो करण फूल झुमको ….पर एकल नृत्‍य की प्रस्‍तुति दी गई। समापन मालवी गरबा म्‍हारी अंबा जगदम्‍बा खेल चौक में जी…..  से किया गया। आपके साथ हारमोनियम पर श्री रोहित चावरे, ढोलक पर पं. माधव तिवारी ने संगत की। गायन श्रीमती अर्चना तिवारी व सहायक स्‍वर सुश्री नीलिमा पंवार का था।

       उमासांझी महोत्‍सव के तीसरी संध्‍या की अंतिम प्रस्‍तुति रंगउत्‍सव संस्‍था द्वारा मालवा के लोकशैली व लोकगीतों पर आधारित नाटक ” औड़का” की हुई। जिसमें परिकल्‍पना व निर्देशन श्री राजेन्‍द्र चावडा का रहा। संगीत संयोजन श्री निलेश मनोहर, वादन श्री अंशुल भटनागर व गायन सुश्री मनीषा व्‍यास व समूह का रहा। ”ओड़का” नाटक डॉ. पूरण सहगल की मालवी लोककथा पर आधारित है। नाटक के शुरूवात भगवान शंकर और माता पार्वती के भूमि पर भ्रमण करने के दौरान माता पार्वती की खेत के बीच खडे मनुष्‍य जैसे पुतले को जीवित करने की जिद पर भगवान शंकर की एक नहीं चलती और उन्‍हें ”औडके” को जीवित करना पड़ता है। औड़का जीवित होते ही वह समृद्ध गांव को अपने अधीन कर उसे उजाड देता है। अंत में गांव के लोग मिलकर औडका को मार देते है। माता पार्वती गांव को उजडा देखकर भगवान शंकर से क्षमायाचना करती है और शिव उस गॉव को पून: खुशहाल करने का वरदान देते है। यह सुखान्‍त प्रस्‍तुति इस तरह संपन्‍न होती है।

       कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्‍जवलन के साथ किया गया। इस अवसर पर श्री महाकालेश्‍वर मंदिर प्रबन्‍ध समिति के उपप्रशासक श्री आशुतोष गोस्‍वामी, प्रबंध समिति सदस्‍य श्री विजय शंकर पुजारी, श्री  दीपक मित्‍तल, सहायक प्रशासक श्री चन्‍द्रशेखर जोशी, सहा. प्रशासनिक अधिकारी श्री आर.के. तिवारी आदि उपस्थित थे। उपस्थित सदस्‍यों द्वारा सभी कलाकारों का दुपट्टा, प्रसाद व प्रशस्ति पत्र देकर सम्‍मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री अंजलि परमार द्वारा मालवी भाषा में किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम के प्रारंभ होने की सूचना मंदिर परिसर में उज्‍जैन के ढोल वादक श्री राकेश मकवाना की 15 सदस्‍यों की मंडली द्वारा मालवी लोक शैली में शानदार ढोल बजाकर दी गयी।

उमा सांझी महोत्‍सव के दौरान रंगोली की संझा में बना शीश महल  एवं विभिन्‍न झाकिया सजायी गयी

                               

 श्री महाकालेश्‍वर मंदिर के 25 सितम्‍बर से प्रारंभ हुए उमा सांझी महोत्‍सव के तीसरे दिन श्री महाकालेश्‍वर मंदिर के सभामंडप में दोपहर में पुजारी व पुरोहितों द्वारा प्राचीन पत्‍थर पर रंगोली द्वारा संझा बनायी गई। जिसमें रंगोली से उमा माता का शीश महल बनाया गया। रंगोली पं. अनन्‍त नारायण शर्मा, पं. भूषण व्‍यास, पं. संदीप शर्मा, पं. विजय शर्मा, श्री अभिषेक शर्मा, श्री सोमेन्‍द्र शर्मा आदि द्वारा बनाई गई। संझा की झांकी में झूले पर श्री जटाशंकर, नंदी पर श्री घटाटोप, सिंहासन पर श्री मनमहेश, संझा की रंगोली के आगे आसन पर श्री उमा माता जी विराजमान हुए। साथ ही कोटितीर्थ कुंड में भगवान श्री महाकालेश्‍वर की नौका विहार की झॉकी में श्री सप्‍तधान्‍य का विग्र‍ह सजाया गया।  श्री महाकालेश्‍वर मंदिर के सभामंडप में श्री राम मंदिर के पास सायं 05 से 6.30 तक श्री बालकृष्‍णनाथ जी ढोलीबुआ महाराज का नारदीय कीर्तन हुआ।