संजा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का
सारंगपुर।(नवीन रुण्डवाल) मालवा अंचल में प्रतिवर्ष 16 वर्ष से कम उम्र की कन्याअों द्वारा मनाए जाने वाले संजा पर्व की इन दिनों धूम है। कन्याएं प्रतिदिन संजा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी… असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का., संजा माता जीम ले चूठ ले, जीमाऊं सारी रात… जैसे गीत गाती हैं तो एक अलग ही माहौल बन जाता है। श्राद्ध पक्ष के सोलह दिनों तक दीवार पर गोबर से आकृतियां बनाई जाती हैं। शाम को सभी सहेलियां इकठ्ठा होती हैं। संजा माता का पूजन कर गीत गाए जाते हैं। प्रसाद का भोग लगाने से पहले सभी सहेलियों को प्रसाद बताना होता है जिसे ताड़ना कहते हैं। बाद में घर-घर जाकर गीत गाए जाते हैं। आखरी दिन सर्व पितृ अमावस्या को 16 दिन बनाई सूखी आकृतियों को नदी में विसर्जित करते है।
संजा माता गौरा का रूप होती है जिनसे अच्छे पति पाने की मनोकामना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि संजा पर्व मनाने से कला का ज्ञान बढ़ता है क्योंकि इस पर्व के दौरान पशु-पक्षी चांद, सूरज, तारे, लड़की, लड़का, सीढ़ी, बैलगाड़ी आदि बनाकर सजाया जाता है।
सूर्यास्त के बाद आरती : सूर्यास्त से पूर्व संजा तैयार कर ली जाती है एवं सूर्यास्त के बाद आरती की जाती है। कन्याएं दीवारों पर ऐसी आकृतियां बनाती हैं। पहले शाम को सुनाई देते थे संजा गीत, धीरे-धीरे खत्म होती जा रही परंपरा,
संजा आरती
संजा तुम्हारी आरती,संजा तुम्हारी आरती गुलगेंदा हो रही रे,किवो फूल में रम रही रे,
शीशों पे टिका पहन के,की लरियों में रम रही रे,गुलगेंदा हो रही है,
संजा तुम्हारी आरती,गुलगेंदा हो रही रे,
गले में हरवा वहन के पेंडिक में रम रही रे,गुलगेंदा हो रही रे,
संजा तुम्हारी आरती,गुलगेंदा हो रही रे की वो फूलों में रम रही रे,
पैरों में पायल पहन के घूंघरु में रम रही रे,गुलगेंदा हो रही रे,
संजा तुम्हारी आरती,गुलगेंदा हो रही रे की वो फूलों में रम रही रे,
आरती लेखक रेखा पाटीदार,दीक्षा पाटीदार,एकता पाटीदार सारंगपुर,