देवास

जरूरत जितना ही वस्तुओं को संग्रहित करना उत्तम आकिंचन्य धर्म है- पंडित प्रबल जी शास्त्री

देवास। दिगंबर जैन समाज के महापर्व पर्युषण पर्व के 9 वे दिन बुधवार को उत्तम अकिंचन धर्म के बारे में समझाते पंडित जी ने समाजजनों को कहा कि आकिंचन्य का सीधा आशय अपरिग्रह से है।  ज़रूरत जितना ही वस्तुओं का संग्रह करना अकिंचन्य है। आवश्यकता से अधिक किसी भी जीव-अजीव से मोह ना रखना ही अकिंचन्य होता है। हम अक्सर ज़रूरत से अधिक चीज़ो का संग्रह कर लेते हो और फिर उन्हें देख कर कुछ दिन तक मान करते है फिर उनसे पीछा छुड़ाने का उपाय ढूंढ़ते है। इसी प्रक्रिया से बचने के लिए उत्तम अकिंचन्य धर्म का पालन करना सर्वोत्तम है। अत: अपनी आवशयकताओं को सिमित करें।
पंडित जी ने कहा कि पर्युषण पर्व अब समापन की ओर है। मात्र दो दिन शेष है। मुझे विश्वास है कि आप सभी ने धर्माराधन के गत अठवाङे में आत्मोत्थान- प्रेरक दस लक्षणों के विलक्षण क्रम की समीक्षा अवश्य की है, उस पर गहराई से चिंतन किया है। संपूर्ण क्रम बहुत साफ-सुथरा, सुलझा हुआ सुचिंतित और सुनियोजित है। यह चित्त के निर्मलीकरण का एक सीढी-दर-सीढी कार्यक्रम है। अब हमारा कदम पर्युषण पर्व की नवीं सीढी पर है, जहां पहुंचते ही हमारे मन में भीतर-बाहर की मूर्च्छा के विमोचन का दृढ संकल्प उभर आया है। एकमात्र आत्मा ही अपना है, बाकी सब पर पदार्थ है। वे मेरे नहीं है- ऐसा मानना, जानना और उनमें लीन न होना ही उत्तम आकिंचन्य धर्म है। पंडित जी ने कहा कि कुंदकुंदाचार्य ने कहा है कि गुण विशिष्ट आत्मा का ध्यान करना ही आकिंचन्य धर्म है। आकिंचन्य धर्म भेद विज्ञान का सेतु है। परिग्रह का नितांत अभाव होने पर आकिंचन्य भाव प्रकट होता है। परिग्रह दो प्रकार का कहा गया है- आभ्यंतर व बहिरंग। आभ्य?तर परिग्रह के चौदह भेद है-मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य आदि तथा बहिरंग परिग्रह दस प्रकार के हैं-क्षेत्र, मकान, चांदी, सोना धन, धान्य आदि। अंतरंख व बहिरंग परिग्रह के त्यागी ही उत्तम आकिंचन्य के धारी होते हैं। प्राय: परिग्रह के संदर्भ में हमारा ध्यान बहिरंग की ओर ही जाता है। अंतरंग परिग्रह की ओर तो सूक्ष्म चर्चाओं के दौरान ही ध्यान जाता है। वास्तव में धन-धान्यादि स्वयं में परिग्रह नहीं है लेकिन जीव का उनके प्रति ग्रहण का भाव या संग्रह का भाव ही परिग्रह है। पर पदार्थों के प्रति हमारा ममत्व राग ही परिग्रह है। परिग्रह सबसे बङा पाप है और आकिंचन्य सबसे बङा धर्म है। ग्रहस्थों को परिग्रह में एक निश्चय परिमाण रखना चाहिये और उत्तम आकिंचन्य की ओर लक्ष्य रख उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये। जिस शरीर को साथ लाते हैं, वह भी आखिर छूट जाता है तो फिर ये स्त्री, पुत्र, धन-धान्य; खेत, गाङी आदि कैसे मेरे हो सकते हैं? जो मेरा है वह कैसे छूट सकता है, जो छूट सकता है वह मेरा कैसे हो सकता है? हमें व्यवहार में ऐसा विचार करते रहना चाहिये जिससे परिग्रह की नश्वरता का ध्यान बना  रहे।
उक्त जानकारी देते हुए कार्यक्रम प्रवक्ता निलेश छाबड़ा ने बताया कि बुधवार को श्रीजी की शांतिधारा करने का सौभाग्य स्वर्णलता के सी जैन टाटा परिवार एवं  प्रीति शैलेंद्र जैन परिवार एवं मंगल आरती का सौभाग्य  मनोरमा नवीन जैन परिवार को प्राप्त हुआ। मंगलवार रात्रि में समाज की प्रतिभाओं द्वारा विराट कवि सम्मेलन  रखा गया था जो देर रात रात्रि 12:00 बजे तक चला कवि सम्मेलन का संचालन विकास जैन अपने, गुना द्वारा किया गया जिसमें पदम अलबेला गंधर्वपुरी,  अनिल जैन नरसिंहपुर, अश्विन मेहता इंदौर,  राजेंद्र जैन सुजालपुर,  समता सरगम सुसनेर, नवीन भोपाली,  चेतना अजमेरा सोनकच्छ, रीना जैन बड़वाह, सृष्टि जैन प्रतापगढ़, साक्षी जैन देवास,  आयुष धवल इटावा, रेखा जैन तालोद, एवं अक्षय जैन सीहोर ने अपने काव्य पाठ के माध्यम से  समाज जनों को  खूब मोहित किया  एवं समाज जनों द्वारा  प्रथम बार इस तरह के आयोजन  किया गया एवं संपूर्ण समाज द्वारा खूब सराहा गयाद्य बुधवार रात्रि में जैन मिलन द्वारा  धार्मिक जैन भजन प्रतियोगिता का आयोजन रखा गया जिसमें सभी समाजजनों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया एवं जिसे खूब सराहा गया।
आज निकाली जाएगी निकाली जाएगी 108 कलशों के साथ श्रीजी की भव्य शोभा यात्रा
आज अनंत चर्तुदशी के दिन दोपहर 3 बजे पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कवि कालिदास मार्ग से श्रीजी की भव्य शोभा यात्रा निकाली जाएगी जिसमें समाज के सभी वर्ग के लोग उपस्थित होंगे। शोभायात्रा शहर के विभिन्न मार्गो से होकर पुन: मंदिरजी पहुंचेगी जहां पर श्रीजी का 108 कलशों से कलशाभिषेक किया जाएगा। गुरुवार प्रात: 1008 वासुपूज्य भगवान का निर्वाण महोत्सव लाडू चढ़ाया जावेगा एवं रात्रि में भव्य महाआरती व भक्ति की जाएगी।