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NMC बिल: दिल्ली समेत देशभर के डॉक्टर तीसरे दिन भी हड़ताल पर

(देवराज सिंह चौहान) नई दिल्ली: नेशनल मेडिकल कमिशन बिल के खिलाफ डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन जारी है. दिल्ली में एम्स के डॉक्टर तीसरे दिन भी हड़ताल पर हैं. डॉक्टरों के विरोध के बीच गुरुवार को नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्यसभा में एनएमसी बिल को पास करा दिया, जबकि 29 जुलाई को लोकसभा में यह बिल पास हो गया था. पूरे देश के डॉक्टर इस बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं.
डॉक्टरों के हड़ताल के चलते स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से बंद पड़ी हैं. इसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है. हड़ताल की वजह से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. गंगा नगर से आई सुमन अपने बेटे के पैरालाइज का इलाज कराने आई थीं, लेकिन 4 दिन से परेशान हैं, इलाज नहीं हो रहा है. अपनी बीवी का इलाज कराने के लिए रतिराम शर्मा पीलीभीत से आए हैं. उनकी पत्नी को ब्रेन कैंसर है. परेशान हैं, लेकिन इलाज नहीं मिल पा रहा है.
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल को मोदी सरकार राज्यसभा में भी पास कराने में कामयाब रही. वहीं इस बिल के खिलाफ देशभर में डॉक्टर सड़कों पर उतर आए और गुरुवार को अधिकांश डॉक्टर हड़ताल पर रहे.
नेशनल मेडिकल कमिशन विधेयक (NMC) के विरोध में देशभर में डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं. इस मामले पर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने डॉक्टरों से हड़ताल पर न जाने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि यह बिल डॉक्टरों के हित में है.
विरोध के बावजूद सरकार गुरुवार को राज्यसभा में यह बिल पास कराने में कामयाब हो गई जबकि 29 जुलाई को लोकसभा में यह बिल पास हो गया था. बिल पास होने के बाद अगले 3 सालों में नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन किया जाएगा.
इससे पहले एमसीआई के पास एडमिशन, मेडिकल शिक्षा, डॉक्टरों की रजिस्ट्रेशन से जुड़े काम होते थे, लेकिन अब इस बिल के पास होने के बाद यह सारा काम एनएमसी के पास चला जाएगा. इस तरह से एमसीआई की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन ले लेगा.
बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को 17 जुलाई के दिन मंजूरी दे दी थी. विधेयक का मुख्य उद्देश्य मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के स्थान पर एक चिकित्सा आयोग स्थापित करना है. बताया जाता है कि इससे भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 निरस्त हो जाएगा.
चिकित्सा आयोग निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50 फीसदी सीटों के लिए सभी शुल्कों का नियमन करेगा. जिससे प्रवेश शुल्क में कमी की उम्मीद जताई जा रही है.